इकाई – प्रथम | UNIT-FIRSTभारत में अर्थशास्त्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, परिभाषाएँ, व्यष्टि तथा समष्टि की अवधारणा एवं महत्व आर्थिक अध्ययन की रीतियाँ एवं अर्थशास्त्र के नियम अर्थशास्त्र का महत्व एवं अर्थव्यवस्था की आधारभूत समस्याएँभारत में अर्थशास्त्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, परिभाषाएँ, व्यष्टि तथा समष्टि की अवधारणा एवं महत्व(Economics in India :Historical Background, Definitions, Micro and Macro concept and Importance)दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)प्रश्न 1.भारत में अर्थशास्त्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझाइए । Explain the historical background of Economics in India. भारत में अर्थशास्त्रउत्तर-(Economics in India)• परिचय (Introduction ) – अर्थशास्त्र Economics को जब भी पढ़ा जाता है अथवा आर्थिक विश्लेषण किए जाते हैं, आर्थिक गणना की जाती है तो अधिकांश पश्चिमी अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्त अथवा उनकी नीतियों का ही अनुसरण किया जाता है, परन्तु अधिकांश पश्चिमी अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्त पश्चिम की अर्थव्यवस्था पर ही खरे उतरे हैं। आज आधुनिक अर्थव्यवस्था में कुछ ही सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं, परन्तु अधिकांश सिद्धान्त उसी अर्थव्यवस्था के नियमों पर क्रियान्वित होते हैं। वर्तमान में भारत विश्व की एक उभरती तथा प्रगतिशील अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आई है और भारतीय अर्थशास्त्रियों के विचारों के रूप में सामने आई है। भारतीय. अर्थशास्त्रियों के विचारों, सिद्धान्तों को अपनाया जाए तो निश्चित तौर पर विश्व की समस्त पिछड़ी और विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ प्रगति करेंगी। भारतीय अर्थशास्त्रियों का विश्व की आर्थिक क्रियाओं में योगदान क्या रहा, इस अध्याय में इसी पक्ष को विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है । अर्थशास्त्र के जनक अथवा आर्थिक सिद्धान्तों को एकत्र कर सबके समक्ष लाने का क्षेय एडम स्मिथ को जाता है, परन्तु भारतीय अर्थशास्त्री आचार्य कौटिल्य का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।भारतीय इतिहास के स्वर्णिम युग मौर्यकाल में आचार्य विष्णुगुप्त का प्रादुर्भाव हुआ था । भारतीय इतिहास में उनको चाणक्य की संज्ञा दी गई है। आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना की थी। इस पुस्तक में 6000 श्लोक 180 प्रकरण, 150 अध्याय एवं 15 अधिकरण ,[1].
2 / यशराज व्यावसायिक अर्थशास्त्रहैं । इतिहासकारों के अनुसार आचार्य चाणक्य ने इसकी रचना 300 ई. ईसा पूर्व की थी। इस पुस्तक में कौटिल्य ने राजनीति, धर्म, नीति, न्याय, प्रशासन, कृषि, पशुपालन, राजस्व आदि सभी विषयों का प्रतिपादन किया है, जो आज भी प्रासंगिक हो सकता है।आचार्य चाणक्य के बाद एक लम्बे अन्तराल तक अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में कोई विशेष मत प्रतिपादित नहीं हो पाया, किन्तु भारतवर्ष में जब सम्राट अकबर का राज्य था, एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री उनके नवरत्नों में था, जिसे इतिहास राजा टोडरमल के नाम से जानता है, भूमि प्रबन्धन की उनकी व्यवस्था को वर्तमान में भी उपयोग में लाया जाता है ।निकट अतीत आधुनिक भारत में अर्थशास्त्री के रूप में दादाभाई नौरोजी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है । उनको आधुनिक भारतीय अर्थशास्त्र के जनक के रूप में जाना जाता है, वहीं बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि एवं अद्भुत प्रतिभा के धनी, छात्र जीवन से ही वह देश की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति से चिन्तित रहते थे, वह है दीनदयाल उपाध्याय । वे समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान एवं स्वदेशी अर्थव्यवस्था के माध्यम से देश का आर्थिक विकास चाहते थे। उन्होंने भारतीय अर्थ नीति, टैक्स, बेरोजगारी आदि आर्थिक समस्याओं पर अपने सटीक मॉडल प्रस्तुत किए ।’डॉ. राममनोहर लोहिया (Dr. Ram Manohar Lohiya) – बीसवीं सदी के महान समाजवादी आर्थिक चिन्तक थे। डॉ. राममनोहर लोहिया पर कार्ल मार्क्स का प्रभाव विद्यार्थी जीवन में बहुत अधिक था, किन्तु बाद में महात्मा गाँधीजी के व्यक्तित्व एवं उनकी विचारधारा से प्रभावित होने लगे । लोहियाजी ने आधुनिक अर्थव्यवस्था के अनुसार मशीनीकरण, नवीन समाजवादी विचारधारा आदि विचारों पर समष्टि अर्थशास्त्र में सिद्धान्त प्रस्तुत किए हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. अर्थशास्त्र की उपाधि प्राप्त करने वाले प्रोफेसर जे. के. मेहता द्वारा एडवान्स इकॉनॉमिक थ्योरी, अर्थशास्त्र की परिभाषा, लाभ का सिद्धान्त, उपभोक्ता की बचतें, जैसे आर्थिक पहलुओं पर अपने सटीक तर्क प्रस्तुत किए हैं । अर्थशास्त्र की इस पुस्तक में प्रथम अध्याय का उद्देश्य यही है कि विद्यार्थी भारतीय अर्थशास्त्रियों के विचार तथा नीतियों को विस्तारपूर्वक पढ़े और समझें तथा इनके अध्ययन के पश्चात् अपने आर्थिक शोध कार्यों भारतीय अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्तों को भी शोध का विषय बनाएँ ।प्रश्न 2. आचार्य कौटिल्य कौन थे ? कौटिल्य के आर्थिक विचारों को संक्षेप में समझाइए |Who was Acharya Kautilya? Discuss in brief the economic thoughts of Kautilya.उत्तर-आचार्य कौटिल्य (Acharya Kautilya)कौटिल्य का नाम विष्णुगुप्त या चाणक्य था । वह चन्द्रगुप्त मौर्य जो 321 ई. पू. गद्दी पर बैठा था, के मंत्री थे। उन्होंने नन्द वंश से किसी कारण रुष्ट होने पर उसके नाश की प्रतिज्ञा की थी और इसकी पूर्ति उन्होंने चन्द्रगुप्त को मगध राज्य का राजा और भारत का सम्राट बनवाकर की थी। उन्होंने अर्थशास्त्र की रचना की थी । कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में राजा, मंत्रियों और उनके कार्यों की व्याख्या की है । इस पुस्तक में 430 पृष्ठ हैं तथा 15 अध्यायों में विभक्त हैं। इस पुस्तक में अर्थशास्त्र के सिद्धान्त एवं व्यवहार की विस्तृत चर्चा की गई है। कौटिल्य के आर्थिक विचारअपने अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ में इन्होंने अनेक आर्थिक विचारों की व्याख्या की है। उनमें से कुछ प्रमुख अग्रलिखित हैं-
भारत में अर्थशास्त्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, परिभाषाएँ / 31. अर्थशास्त्र की परिभाषा – अर्थशास्त्र शब्द की प्रथम परिभाषा कौटिल्य के ग्रन्थ में मिलती है। उनके अनुसार, अर्थ मनुष्य के जीवन की वृत्ति का आधार है । अर्थशास्त्र ह विज्ञान है, जो मनुष्य के एवं पृथ्वी के पालन तथा व्यापार में संयुक्त रूप से होता है। कौटिल्य . ने वृत्ति के स्थान पर अर्थशास्त्र शब्द का प्रयोग किया है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र केवल अर्थ का वर्णन ही नहीं करता है, वरन् इसमें राजनीति, न्यायशास्त्र, सैन्य विज्ञान आदि का भी वर्णन किया गया है।2. कृषि-राज्य के सभी व्यवसाय तीन वर्गों में विभाजित किए गए थे – कृषि, पशुपालन तथा वाणिज्य। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इन तीनों में कृषि को प्रमुख स्थान दिया गया है, क्योंकि यह समाज को अनाज, पशु, धन, सोना, वन सम्पदा तथा सस्ता श्रम प्रदान करती है। कौटिल्य के अनुसार, ब्राह्मण तथा क्षत्रिय कृषि व्यवस्था को अपना सकते थे, परन्तु इनमें ब्राह्मणों को अपने हाथ से हल चलाने की आज्ञा नहीं थी ।3. श्रम की महानता — कौटिल्य ने श्रमिकों के विषय में विस्तार से नियम बताए हैं। उनके अनुसार मजदूरी वस्तु के गुण तथा मात्रा के आधार पर भी होनी चाहिए। छुट्टियों के दिन में अतिरिक्त वेतन मिलना चाहिए। मजदूरी के निर्धारण हेतु न्यूनतम जीवन-निर्वाह मजदूरी का विचार दिया है। उन्होंने वृद्धावस्था में पेंशन, पुरस्कार इत्यादि के विषय में भी विचार दिए हैं।4. व्यापार – कौटिल्य ने व्यापार के विकास तथा नियम सम्बन्धी विस्तृत विवेचना की है। उनके अनुसार, व्यापार पर राज्य का नियन्त्रण आवश्यक है । उस समय स्वतन्त्र व्यापार की प्रथा प्रचलित थी । व्यापार को पाने वाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क तथा प्रशुल्कों को लगाया जाता था । करों से प्राप्त इस आय पर राज्य का अधिकार होता था । व्यापार को विकसित करने के लिए राज्य कानून बनाना था ।5. परिवहन-कौटिल्य के अनुसार परिवहन तथा संवादवाहन के साधनों के विकास का दायित्व राज्य का है। उस समय परिवहन का प्रमुख साधन नदियाँ तथा सड़क थे । विदेशी व्यापार समुद्री मार्ग से होता था । कौटिल्य ने भूमि का मार्ग आर्थिक लाभप्रद बताया है, क्योंकि यह अधिक सुरक्षित होता है ।6. राजस्व – करारोपण से राज्य को सबसे अधिक आय प्राप्त होती थी । इसको ‘राजकर’ कहते थे । कर की दर का निर्धारण हिन्दू धर्म के आदेशों द्वारा किया जाता था । कौटिल्य ने कर प्रणाली के सम्बन्ध में कहा है कि यह ऐसी होनी चाहिए, जो प्रजा के लिए भार स्वरूप न हो। राजा को मधुमक्खी के समान कार्य करना चाहिए, जो पौधों को असुविधा पहुँचाए बिना शहद संचय कर लेती हैं। कर वर्ष में एक बार तथा धनी लोगों पर भुगतान करने की योग्यता के अनुसार लगाने चाहिए।7. मिश्रित अर्थव्यवस्था – कौटिल्य ने राजकीय तथा व्यक्तिगत उद्योगों का वर्णन किया है । इस प्रकार वह मिश्रित अर्थव्यवस्था के पक्षधर थे, परन्तु इस व्यवस्था में वह राज्य के अधिक से अधिक योगदान की बात कहते हैं। राज्य उद्योगों में ‘सूत्राध्यक्ष’ सूती वस्त्रों का निर्माण कराता था तथा ‘रथाध्यक्ष’ रथों का निर्माण करता था। सेना का समस्त सामान सरकारी कारखाने में बनता था। कौटिल्य ने खानों पर भी राज्य का नियन्त्रण आवश्यक बताया, क्योंकि इनसे मूल्यवान धातुएँ प्राप्त होती हैं।8. अन्य विचार – कौटिल्य ने दासों से सम्बन्धित नियम, ब्याज प्राप्ति, कीमतों का नियन्त्रण, नगर नियोजन, सामाजिक सुरक्षा, कल्याणकारी राज्य आदि से सम्बन्धित अनेक विचारों की भी व्याख्या की है।
4 / यशराज व्यावसायिक अर्थशास्त्रप्रश्न 3. अर्थशास्त्र का उद्भव कैसे हुआ ? अर्थशास्त्र की व्यवस्थित परिभाषा दीजिए। How the origin of Economics? Give suitable definition of Economics.” उत्तर- अर्थशास्त्र का उद्भव – अर्थशास्त्र को पढ़ने अथवा समझने से पूर्व सर्वप्रथम हमें यह ज्ञात होना अत्यन्त आवश्यक है कि अर्थशास्त्र का उद्भव अर्थात् उसका जन्म कैसे हुआ है। सामान्यतः यह माना जाता है कि अर्थशास्त्र का जन्म 1776 में हुआ है, क्योंकि इस वर्ष ‘An enquiry in to the nature and causes of the wealth of nations” का प्रकाशन हुआ था। अधिकांश लोग इस बात से सहमत हैं कि स्मिथ ने यत्र-तत्र बिखरे आर्थिक विचारों का संग्रह मात्र किया। यही कारण है, जिसके आधार पर एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का जनक कहा जाता है। यह भी माना जा सकता है कि एडम स्मिथ ही एक ऐसे महान् ‘अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने अर्थशास्त्र को एक व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया।एडम स्मिथ के युग के बाद अर्थशास्त्र उत्तरोत्तर प्रगति-पंथ पर रहा और आज भी प्रगति का क्रम जारी है। अर्थशास्त्र अभी भी अपनी पूर्ण विकास की स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाया है। यह तो भविष्य ही बताएगा कि आधुनिकता एवं परिवर्तनशीलता को देखते हुए नित नए पहलू सामने आते हैं।अर्थशास्त्र की परिभाषा ( Definition of Economics) – अर्थशास्त्र एक प्रगतिशील शास्त्र है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने इसकी भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं । अर्थशास्त्र की परिभाषाओं का वर्गीकरण निम्नलिखित है-(I) धन सम्बन्धी परिभाषाएँ (Wealth Definition)ये परिभाषाएँ निम्न है -:(अ) एडम स्मिथ – ” अर्थशास्त्र वह अध्ययन है, जो राष्ट्रों के धन के स्वभाव एवं इसके कारणों की जाँच करता है। एडम स्मिथ की परिभाषा का सार, “अर्थशास्त्र धन सम्बन्धी विज्ञान है । “(ब) जे.बी.से. के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो धन का अध्ययन करता है।” (II) कल्याण सम्बन्धी परिभाषाएँ (Welfare Definitions) :इन परिभाषाओं में निम्न प्रमुख है-(अ) प्रो. मार्शल, “अर्थशास्त्र में मानव जीवन के साधारण व्यापार सम्बन्धी कार्यों का अध्ययन किया जाता है । यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच करता है, जिसका निकट सम्बन्ध भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपयोग से है, जो कल्याण के लिए आवश्यक है । “(ब) प्रो. पीगू, “प्रो. पीगू मार्शल के शिष्य थे । उन्होंने अपनी परिभाषा को थोड़ा व्यापक रूप प्रदान किया है, “अर्थशास्त्र में आर्थिक कल्याण का अध्ययन होता है। आर्थिक कल्याण से हमारा अभिप्राय, सामाजिक कल्याण के उस भाग से है, जिसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप मुद्रा के मापदण्ड से सम्बन्धित किया जा सकता है।”(III) दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषाएँ (Scarcity Definitions) :इन परिभाषाओं में निम्न प्रमुख है-(अ) प्रो. रॉबिन्स के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो लक्ष्यों तथा उनके सीमित ,
भारत में अर्थशास्त्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, परिभाषाएँ / 5एव वैकल्पिक उपयोगों वाले साधनों के परस्पर सम्बन्धों के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।”(ब) इच्छाओं के लोप सम्बन्धी परिभाषाएँ (Definition on wantlessness): भारतीय दर्शन से प्रभावित होकर जे. के. मेहता, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय `आचरण का, इच्छारहित अवस्था में पहुँचने के एक साधन के रूप में अध्ययन करता है।” (स) आधुनिक परिभाषाएँ (Modern Definitions) :नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. सैम्युलसन ने वर्तमान समय के अर्थशास्त्र को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति और समाज अनेक प्रयोगों में लाए जाने वाले उत्पादन के सीमित साधनों का, एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन करने एवं उनको समाज में विभिन्न व्यक्तियों और समूहों में उपभोग हेतु वर्तमान तथा भविष्य के बीच बाँटने के लिए किस प्रकार चुनते हैं, ऐसा वे चाहे मुद्रा का प्रयोग करके करें अथवा इसके बिना करें।”निष्कर्ष – अर्थशास्त्र के उद्भव एवं विचारधारा को लेकर हमने एडम स्मिथ से लेकर प्रो. रॉबिन्स तक के विचारों का अध्ययन किया। इन विचारधाराओं का वर्गीकरण किया जाए, तो तीन विचारधाराएँ क्रमशः प्रतिष्ठित विचारधारा कल्याणवादी विचारधारा तथा दुर्लभता सम्बन्धी विचारधारा का ही अधिक बोलबाला रहा है। इन विभिन्न विचारधाराओं के परिणामस्वरूप ही अर्थशास्त्र की विषय सामग्री में भिन्नता आ गयी है। इन विचारों के आधार पर यह स्पष्ट किया जा सकता है कि उस समय के विद्वानों ने अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री में कुछ आधुनिक क्षेत्रों, पहलुओं को छोड़ दिया था । अतः अर्थशास्त्र की परिभाषा एवं उद्भव के सम्बन्ध में हम यह मान सकते हैं कि यह एक विकासशील अध्ययन है, जो व्यावहारिकता के आधार पर परिवर्तित होता रहता है।प्रश्न 4. व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा को उदाहरण सहित समझाइए । Discuss with example to concept of Micro and Macro Economics.अथवाव्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा इनकी पारस्परिक निर्भरता को समझाइये |Distinguish between Micro & Macro Economics. Explain the Interdependence of Micro & Macro Econòmics.अथवाव्यष्टि तथा समाष्टि अर्थशास्त्र में भेद कीजिए। इन दोनों के बीच क्या सम्बन्ध है?Distinguish between micro and macro Economics. What is the relationship between the two.उत्तर- व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक विश्लेषण की दो शाखाएँ हैं । ये दोनों आपस में प्रतियोगी न होकर एक-दूसरे की पूरक हैं। इनमें से कोई भी प्रणाली अपने आप में पूर्ण नहीं है। प्रत्येक प्रणाली की अपनी-अपनी सीमाएँ तथा दोष हैं। एक प्रणाली की सीमाएँ तथा दोष दूसरी प्रणाली के द्वारा दूर की जा सकती हैं, इसलिए व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र को एक-दूसरे का प्रतियोगी न मानकर पूरक माना गया है।दोनों प्रणालियों की तुलना एवं पारस्परिक निर्भरता का विवेचन करने से पूर्व इनका आशय समझना आवश्यक है।
6 / यशराज व्यावसायिक अर्थशास्त्रव्यष्टि या सूक्ष्म अर्थशास्त्र की अवधारणा(Concept of Micro Economics)व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत व्यक्तिगत इकाइयों के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। व्यक्तिगत इकाई एक व्यक्ति, एक परिवार, एक फर्म या एक उद्योग के रूप में हो सकती है।• किसी वस्तु विशेष के मूल्य का निर्धारण कैसे होता है? एक व्यक्ति अपनी सीमित आय से अधिकतम संतुष्टि कैसे प्राप्त कर सकता है? एक फर्म या उत्पादक किस प्रकार अपने लाभ को अधिकतम कर सकता है, आदि विषयों पर अध्ययन सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है।समष्टि या व्यापक अर्थशास्त्र की अवधारणा(Concept of Macro Economics)समष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो किसी व्यक्ति या इकाई विशेष का नहीं वरन् सभी इकाइयों या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के व्यवहार का अध्ययन करता है। समष्टि अर्थशास्त्र में कुल आय, कुल उत्पादन, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल रोजगार एवं कुल सामान्य मूल्य स्तर आदि का अध्ययन किया जाता है ।व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरताआर्थिक घटनाओं के अध्ययन हेतु व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र के अलग-अलग तरीके हैं परन्तु फिर भी ये दोनों विधियाँ एक-दूसरे से पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं है । वास्तविकता तो यह है कि ये दोनों आपस में प्रतियोगी न होकर एक-दूसरे की पूरक हैं। प्रो. सेम्युलसन का यह कथन ठीक है कि “वास्तव में सूक्ष्म एवं वृहद् अर्थशास्त्र में कोई विरोध नहीं है। दोनों अत्यन्त आवश्यक हैं। यदि आप एक को समझते हैं और दूसरे से अनभिज्ञ रहते हैं तो आप केवल अर्द्ध शिक्षित हैं ।” इन दोनों विधियों में से प्रत्येक की सीमाएँ एवं दोष हैं तथा एक विधि की सीमाएँ एवं दोष दूसरी विधि के द्वारा ही दूर की जा सकती है। व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-व्यष्टि अर्थशास्त्र की समष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भरता – केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र के द्वारा आर्थिक घटनाओं का अध्ययन करना सम्भव नहीं है । इसे निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है- -(1) एक फर्म द्वारा निर्मित वस्तु की माँग बाजार में कितनी होगी, यह बात उस फर्म द्वारा निर्धारित कीमत पर निर्भर नहीं करती है, वरन् समाज की कुल क्रय शक्ति पर निर्भर करती है। (2) इसी प्रकार एक वस्तु विशेष के मूल्य का निर्धारण केवल उस वस्तु विशेष की माँग और पूर्ति पर ही निर्भर नहीं करता है, वरन् बाजार में उपलब्ध अन्य वस्तुओं की कीमतों पर निर्भर करता है।(3) जब एक फर्म या उद्योग श्रम एवं कच्चे माल पर व्यय की राशि अथवा उत्पादन लागत का अनुमान लगाता है, तब वह स्वयं अपनी माँग से नहीं वरन् उन साधनों की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में माँग पर निर्भर करता है ।उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि व्यष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक घटनाओं एवं समस्याओं के अध्ययन के लिए समष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भर है ।समष्टि अर्थशास्त्र की व्यष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भरता (i) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का निर्माण व्यक्ति इकाई के योग से होता है। (जैसे व्यक्तियों,
भारत में अर्थशास्त्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, परिभाषाएँ / 7.परिवारों, फर्मों आदि) अतः सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के संचालन एवं उचित ज्ञान के लिए विभिन्न वैयक्तिक इकाइयों तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों पर ध्यान देना आवश्यक है 1 (ii) वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होने पर उत्पादन में वृद्धि होना स्वाभाविक है, किन्तु यह आवश्यक नहीं कि सभी फर्मों में उत्पादन बढ़ा हो। कुछ फर्में ऐसी भी हो सकती हैं जिनमें उत्पादन लागत वृद्धि नियम लागू हो रहा हो और मूल्यों में वृद्धि होने पर भी उत्पादन में वृद्धि न हो। (iii) माना कि लोगों की आय बढ़ जाती है, तो लोग इसे विभिन्न प्रकार से व्यय करते हैं। आय बढ़ जाने से लोगों में साइकिल की अपेक्षा मोपेड या स्कूटर की माँग बढ़ जायेगी । फलस्वरूप साइकल के कारखाने में उत्पादन घटेगा जबकि मोपेड तथा स्कूटर के कारखाने मेंउत्पादन बढ़ेगा।उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि व्यापक अर्थशास्त्र समस्याओं के अध्ययन के लिए सूक्ष्म अर्थशास्त्र पर निर्भर है।निष्कर्ष – इस प्रकार उपर्युक्त व्याख्या से यह स्पष्ट है कि व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं व एक-दूसरे पर निर्भर हैं । समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व इसीलिए है कि यह विधि कुल आय, कुल उत्पादन, कुल रोजगार जैसे समूहों से सम्बन्धित है और व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्व इसलिए है कि राष्ट्रीय आय एवम् कुल उत्पादन अंतत: लाखों व्यक्तियों तथा फर्मों के निर्णयों का परिणाम होती है ।संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र के उचित ढंग एवं सही संचालन एवं समस्याओं का उचित हल ढूँढने के लिए व्यष्टि एवं समष्टि दोनों अर्थशास्त्र की आवश्यकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. सेम्यूलसन (Samulson) का यह कथन उचित ही है कि “वास्तव में सूक्ष्म एवं वृहद अर्थशास्त्र में कोई विरोध नहीं है । दोनों अत्यन्त आवश्यक हैं। यदि आप एक को समझते हैं और दूसरे से अनभिज्ञ रहते हैं तो आप केवल अर्द्धशिक्षित हैं । ‘व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर (Difference between Micro and Macro Economics)अन्तर1. अर्थव्यष्टि अर्थशास्त्र इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत इकाइयों के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है ।2. उपयोगिता इस अर्थशास्त्र का उपयोग समष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों की सत्यता की जाँच के लिए किया जा सकता है। यह व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है । व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत, आय, कीमत, उत्पादन आदि की ओर निर्देश देता है । 3. महत्व.. 4. निर्देशनसमष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र की वह शाखा है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष का नहीं वरन् सभी इकाइयों या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। समूह की संरचना के भ्रम को दूर करने में यह उपयोगी होता है ।यह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर नीति निर्धारण में उपयोगी है।यह सामान्य कीमत स्तर, राष्ट्रीय आय और सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की ओर निर्देशन करता है।
8 / यशराज व्यावसायिक अर्थशास्त्र5. विश्लेषण6. प्रधानतायह कीमत विश्लेषण से जुड़ा हुआ है। यह आय विश्लेषण से जुड़ा हुआ है।7. समाधान एवं नीतिइसमें सम्पूर्ण व्यवहार की संरचना तथा इसमें सम्पूर्ण व्यवहार को प्रधानता अंगों की विविधताओं को प्रधानता दी दी जाती है।जाती है।इसमें व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान यह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की का विश्लेषण कर एवं नीति की व्याख्या की जाती है। समस्या विश्वव्यापी नीतियों का निर्धारणप्रस्तुत करता है ।प्रश्न 5. अर्थशास्त्र के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक महत्व की विवेचना कीजिए । Discuss theoritical and practical significance of economic study. अथवाव्यावहारिक जीवन में अर्थशास्त्र के अध्ययन से क्या लाभ हैं ? इसका अध्ययन ग्रामीण जीवन के सुधार में किस प्रकार सहायक है ? What is advantages of economic study in practical life? How is this study useful to farmers?अथवाहम अर्थशास्त्र का अध्ययन क्यों करते हैं ? विस्तारपूर्वक समझाइए | Why do we study economics? Explain in detail.उत्तर-अर्थशास्त्र का महत्व(Importance of Economics)“अर्थशास्त्र आधुनिक युग का बौद्धिक धर्म है।”- डार्विनआज संसार का प्रत्येक देश अपनी आर्थिक समस्या को सुलझाने में लगा है। रहनसहन का स्तर ऊँचा करना, प्राकृतिक साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग करना, उद्योगों का विकास करना, रोजगार की व्यवस्था करना, पूँजी निर्माण को गति देना, प्रत्येक देश की अनिवार्य जरूरत हो गयी है। ऐसे में अर्थशास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य हो गया है । यह ऐसा शास्त्र है जिसकी मदद से हम देश की अर्थव्यवस्था सम्बन्धी समस्याओं से निपट सकते हैं।प्रो. पीगू ने अर्थशास्त्र को, “ज्ञानदायक तथा फलदायक शास्त्र बताया है।” अर्थशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसके अध्ययन से उपभोक्ता, निर्माता, कृषक, राजनीतिक या श्रमिक सभी वर्ग लाभान्वित हैं।’अर्थशास्त्र के अध्ययन के महत्व को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- (1) सैद्धान्तिक महत्व। (2) व्यावहारिक महत्व ।(1) सैद्धान्तिक महत्व – सैद्धान्तिक महत्व को दो भागों में बाँटा गया है(अ) सामान्य सैद्धान्तिक महत्व और (ब) विशुद्ध आर्थिक सिद्धान्त ।(अ) सामान्य सैद्धान्तिक महत्व – सामान्य सैद्धान्तिक महत्व को निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है-1. ज्ञान में वृद्धि-आर्थिक अवस्था का ज्ञान अर्थशास्त्र के अध्ययन से ही प्राप्त होता है। आर्थिक समस्याओं को कैसे सुलझाना अर्थशास्त्र हमें सिखाता है। इसके अध्ययन से हम धन का उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा राजस्व की क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं।1
भारत में अर्थशास्त्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, परिभाषाएँ / 92. चिन्तन शक्ति का विकास – यह तर्क करने की, सोचने-समझने की शक्ति में वृद्धि करता है । अर्थशास्त्र के नियमों का निर्माण भी तर्कों पर आधारित है। अर्थशास्त्र की आगमन तथा निगमन प्रणाली का अध्ययन हमारी तर्क शक्ति को 1 ‘बढ़ाता है। I3. पारस्परिक निर्भरता का ज्ञान – अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। व्यवसाय, उद्योगों तथा आर्थिक क्रिया-कलापों में अटूट रिश्ता होता है। इसका विस्तृत अध्ययन अर्थशास्त्र में किया जाता है ।4. आर्थिक प्रणालियों का ज्ञान – आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिये विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न आर्थिक प्रणालियाँ अपनायी जाती हैं। कोई साम्यवाद अपनाता है तो कोई पूँजीवाद या कोई देश मिश्रित आर्थिक प्रणाली को अपनाता है। इन प्रणालियों की अर्थशास्त्र विस्तृत विवेचना करता है ।(ब) विशुद्ध आर्थिक सिद्धान्त – अर्थशास्त्र के अन्तर्गत कई विशुद्ध आर्थिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ है, जिससे अनेक लाभ होते हैं ।आर्थिक सिद्धान्त कारण और परिणाम के मध्य सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं। आर्थिक तत्वों में परिवर्तन के कारण समयानुसार भविष्यवाणी में आर्थिक सिद्धान्त मदद करते हैं। एक ठोस संरचना प्रस्तुत करने में आर्थिक सिद्धान्त मदद करते हैं(2) व्यावहारिक महत्व – सैद्धान्तिक महत्व के अतिरिक्त अर्थशास्त्र का व्यावहारिक महत्व भी है। जिसे बिन्दुओं के द्वारा समझा जा सकता है-1. उत्पादकों को लाभ प्रत्येक उत्पादक कम लागत पर श्रेष्ठ व अधिक उत्पादन करना चाहता है। उत्पादक उत्पादन की तकनीक, विज्ञापन, वस्तु की माँग, श्रम विभाजन, वृहत् बचतें आदि की जानकारी चाहता है । अर्थशास्त्र यह कार्य बहुत आसानी से करता है। इस शास्त्र में इन सभी का विस्तृत अध्ययन होता है । यह शास्त्र उत्पादक को साधनों का आदर्शतम प्रयोग भी सिखाता है। इसके अध्ययन से उत्पादक कम लागत श्रेष्ठ व अधिक उत्पादन कर सकता है ।2. व्यापारियों को लाभ – अर्थशास्त्र के अध्ययन से व्यापारी को भी लाभ प्राप्त होते हैं। सरकार की आर्थिक नीतियों, करारोपण, बजट आदि का व्यापारी अध्ययन करके अपने व्यापार को समायोजित कर सकता है। बाजार की दशाओं का अध्ययन करके वह अपनी वस्तुओं को महँगे स्थानों पर विक्रय कर सकता है। हम कह सकते हैं कि एक व्यापारी अर्थशास्त्र के अध्ययन के बिना अपने व्यापार का सफल संचालन कर ही नहीं सकता ।3. श्रमिकों को लाभ – अर्थशास्त्र के अध्ययन करने से श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। श्रम व पूँजी में मधुर सम्बन्ध का निर्माण अर्थशास्त्र करता है। इसके अध्ययन .से श्रमिकों का जीवन-स्तर ऊँचा उठता है । अर्थशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जो श्रमिकों को उनके कर्तव्य व अधिकारों की जानकारी प्रदान करता है ।4. उपभोक्ता को लाभ – अर्थशास्त्र का अध्ययन एक उपभोक्ता को यह सिखाता है कि वह अपने सीमित साधनों से अधिकतम सन्तुष्टि कैसे प्राप्त कर सकता है । यह शास्त्र उपभोक्ता को मितव्ययिता का गुण सिखाता है । पारिवारिक बजट का ज्ञान, वस्तु क्रय का ज्ञान तथा आय का सदुपयोग अर्थशास्त्र ही सिखाता है ।5. कृषकों को लाभ-किसानों के लिये अर्थशास्त्र का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण होता है । भारतीय किसानों के लिये अर्थशास्त्र का अध्ययन बहुत जरूरी है। इसकी सहायता से वे कम लागत पर अधिक उत्पादन कर सकते हैं। उत्पादन की आधुनिक तकनीक, सहकारी साख संस्थाओं की जानकारी यह शास्त्र प्रदान करता है, जो कृषक के लिये जरूरी है।
10 / यशराज व्यावसायिक अर्थशास्त्र6. राजनीतिज्ञों को लाभ- अर्थशास्त्र के अध्ययन से राजनीतिज्ञ भी लाभान्वित होते हैं। राजस्व नीति का ज्ञान उन्हें अर्थशास्त्र ही प्रदान करता है। आर्थिक विकास की जानकारी विदेशी व्यापार की जानकारी अर्थशास्त्र के अध्ययन से ही प्राप्त होती है। सत्तारूढ़ दल तथा विरोधी दल दोनों को ही अर्थशास्त्र की जानकारी होनी चाहिये। अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में मदद करता है। यह एक वित्त मंत्री को श्रेष्ठ कर की जानकारी देता है। विभिन्न योजनाओं की सफलता अर्थशास्त्र के अध्ययन में ही निहित है। 7. समाज सुधारकों को लाभ एक समाज सुधारक को देश की सामाजिक आर्थिक स्थिति की जानकारी होना चाहिये, अन्यथा वह सही दिशा में समाज सुधार का कार्य नहीं कर सकेगा। सामाजिक समस्याओं के पीछे आर्थिक कारण मौजूद होते हैं। समाज सुधारक अर्थशास्त्र का अध्ययन करके, इन समस्याओं को समाप्त करने के लिये उचित उपाय प्रस्तुत कर सकते हैं । 8. विद्यार्थियों को लाभ- यदि एक विद्यार्थी बैंकर, एकाउण्टेण्ट या मैनेजर बननाचाहता है, तो उसे अर्थशास्त्र का ज्ञान अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। यदि विद्यार्थी चाहता है ऐसे क्षेत्र में अपनी सेवाएँ दे तो उसे अर्थशास्त्र अच्छा मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।भारत में अर्थशास्त्र का महत्वभारत एक कृषि प्रधान देश है। जहाँ की जनसंख्या समस्या प्रबल है । पूँजी शर्मिली है। . व्यापारी अपनी प्रारम्भिक जोखिमों को उठाने में असमर्थ है। देश का औद्योगिक विकास असन्तुलित है। निर्धनता अपनी चरम सीमा पर है । कृषि मानसून के इशारे पर चलती है। ऐसे हालात में अर्थव्यवस्था केवल अर्थशास्त्र के सहारे ही जीवित रह सकती है । अर्थशास्त्र का अध्ययन उद्योगों की प्रगति, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करता है । गरीबी मिटाने के लिये ठोस योजनाएँ प्रदान करता है। देश में रोजगार के अवसर प्रदान करता है । प्रत्येक भारतवासियों के लिये अर्थशास्त्र का अध्ययन लाभदायक है।अर्थशास्त्र केवल धन बनाने वाला विज्ञान नहीं है बल्कि मानव कल्याण को प्रभावित करने वाला शास्त्र भी है ।लघुउत्तरीय प्रश्न ( Short Answer Type Questions) प्रश्न 6. अर्थशास्त्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि संक्षेप में लिखिए । Write in brief to historical background of Economics. इसके उत्तर के लिये प्रश्न क्र. 1 ध्यान से पढ़ें। उत्तर- ९प्रश्नउत्तर-व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता बताइए । State the Inter-dependence of Micro and Macro Economics. इसके उत्तर के लिये प्रश्न क्र. 4 ध्यान से पढ़ें।अतिलघुउत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)प्रश्न 8. उत्तर- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की विशेषताएँ बताइये | State the characteristics of micro economics. व्यष्टि अर्थशास्त्र की विशेषताएँ व्यष्टि अर्थशास्त्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-. 1. व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन- इसमें व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत उत्पादन व्यक्तिगत उपभोग एवं व्यक्तिगत फर्म आदि व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाताहै।